बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था
शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे
समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में
सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे
जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था
पर सुकुन था एक दिन में महीनों के लम्हे जी लिए थे
थामकर हाथ तुम्हारा छोड़ने का मन तो नही था
फिर मिलेंगे ये सोचकर हम दोनो तसल्ली कर लिये थे
घर को लौट आयी थी लेकर तुम्हारी खुश्बू
तुम्हारे दिये हुए सभी खत आज कई दफा पढ़ लिये थे
बार बार अपनी नादानियों को कोस रही थी
कुछ कीमती लम्हे तुमसे नाराजगी में गवा दिये थे
सोच रही थी काश पूरा जीवन यूँ ही बीत जाता
फिर समाज और परिवार के कर्तव्य के ख्याल ने सब जबाब दे दिये थे।
-आस्था गंगवार ©
khubsurat rachna.
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Nice one 🙂
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बेहद प्रेरणा दायक है
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dil chhu gayi apki kavita maja aa gaya
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नायाब अंदाज़ ए बयाँ
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