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Category Archives: Life poem
मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।
मंजिल और आसान क्या मजाक हैमंजिलें क्षितिज की तरह होती हैजिनके होने का बस भ्रम होता हैमंजिल तक चलते चलते लगता हैकि बस चलते ही जा रहे हैमगर उस तक पहुंच नही रहे हैंज्यों ही लगता है कि पहुँच गयेत्यों ही मंजिल अपना रूप बदल लेती हैऔर जिंदगी धक्के मारकर कहती हैयह मंजिल नही हैंपढ़ना जारी रखें “मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।”
तुम्हारे प्रेम मे रंगी
बेफिक्र हो चली थी।
बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था पर सुकुन था एक दिन में महीनों केपढ़ना जारी रखें “बेफिक्र हो चली थी। “
जब तलक चोट न लगे।
जब तलक चोट न लगे, मन गान नहीं करता। कलम प्यासी है लिखने को, मगर ये पथ आसान नहीं लगता। -आस्था गंगवार ©
मुझे न बसंत भाता है।
मुझे न बसंत भाता है, न ही बहारे अच्छी लगती है। सब कुछ इन्द्रधनुषी होकर भी, मन के पतझङ की पीङा मुझे डसती है। आग लगी है जज्बातो की अंदर, नीरसता बर्फ सी जमी फिर भी नहीं पिघलती है। सब मसाले है पास मेरे खुशियां पकाने के, जिन्दगी फिर भी फीकी चाय लगती है । पढ़ना जारी रखें “मुझे न बसंत भाता है। “
किसी पेड़ की छाँव में।
किसी पेड़ की छाँव में किसी की राह तकते कोई लङकी बैठती है बिल्कुल वैसे ही मैं हूँ अभी खिङकी तकती कभी दरवाजे की आहट सुनती कभी लगता किसी का इन्तजार हो पर अभी तो कोई आने वाला नहीं कोयल की आवाज आती है सुबह बैचैन रहती है शाम को बाँबरी हो जाती है यूँपढ़ना जारी रखें “किसी पेड़ की छाँव में। “
शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें
श्वेत, सर्द आनन्दमय चाँद की मोहब्बत भरी रात या कहूँ दर्द भरी रात इस चमकीली रात में बूँद बूँद झरती चाँदनी जहां चाँद से जुदा होती सुदूर धरती पर कहीं जाकर दर -ब -दर ठिकाना ढ़ूढ़ती कभी घास पर जा बैठती कभी फूलो की पंखुड़ियों पर सजती दूर धरा से चाँद को निहारती होकर रागमयपढ़ना जारी रखें “शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें “
नारी का स्थान।
यदि एक औरत अपने आत्मसम्मान के लिए अपने जीविकोपार्जन के लिए स्वयं काम करने का जिम्मा लेती है सिर उठाकर चलती है अपनी मर्ज़ी से जीती है तब तमाम दूसरी औरतें जो घर बैठकर पति की कमाई पर फूलती है उस एक औरत के खिलाफ दुनियादारी की अफवाहें फैलाती है उसको हीनता की दृष्टि सेपढ़ना जारी रखें “नारी का स्थान। “
जो चोट खाकर बैठे है।
जो चोट खाकर बैठे है वो शायर बन बैठे है टूटे दिल के सारे टुकड़े अल्फाजो से जोड़ बैठे है हाल ए दिल जमाने में सुनाने और जाये कहां कोरे पन्नो के सिवा सब मशरूफ बैठे है कोई मशगूल है खुद में कोई किस्मत का मारा है एक टूटा दिल लेकर के फिरता है तोपढ़ना जारी रखें “जो चोट खाकर बैठे है। “