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इस बार लौटकर मत जाना ।

तुम आओ तो इस बार लौट कर मत जाना। मन के बगीचे में हरियाली तुम्ही से खिले फूलों को फिर से नहीं है मुरझाना। तुम बिन हर एक क्षण है पतझड़ अकेले तुम बिन अब नहीं है एक पल बिताना। तुम आओ तो इस बार लौट कर मत जाना। तुम बिन हाल एेसा जैसे पानीपढ़ना जारी रखें “इस बार लौटकर मत जाना ।”

तुम्हारी मुस्कान हो मेरा जीवन हो।

जिस क्षण तुम मुझे स्वयं से अलग करो, वह मेरे जीवन का अन्तिम क्षण हो। न चाह रहे फिर कुछ पाने की, मृत्यु पार भी सिर्फ तुम ही तुम हो। विलग होकर तुमसे मिले अमरता, हँसकर वह भी मुझे अस्वीकार हो। या दे ईश्वर सारा जग मुझको तुम बिन, कोई स्वार्थ कभी न तुमसे बढ़करपढ़ना जारी रखें “तुम्हारी मुस्कान हो मेरा जीवन हो।”

बेफिक्र हो चली थी। 

बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था  शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे  समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में  सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे  जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था  पर सुकुन था एक दिन में महीनों केपढ़ना जारी रखें “बेफिक्र हो चली थी। “

शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें 

श्वेत, सर्द आनन्दमय  चाँद की मोहब्बत भरी रात  या कहूँ दर्द भरी रात  इस चमकीली रात में  बूँद बूँद झरती चाँदनी  जहां चाँद से जुदा होती  सुदूर धरती पर कहीं जाकर  दर -ब -दर ठिकाना ढ़ूढ़ती  कभी घास पर जा बैठती  कभी फूलो की पंखुड़ियों पर सजती  दूर धरा से चाँद को निहारती  होकर रागमयपढ़ना जारी रखें “शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें “

जो चोट खाकर बैठे है। 

जो चोट खाकर बैठे है  वो शायर बन बैठे है  टूटे दिल के सारे टुकड़े  अल्फाजो से जोड़ बैठे है  हाल ए दिल जमाने में  सुनाने और जाये कहां  कोरे पन्नो के सिवा  सब मशरूफ बैठे है  कोई मशगूल है खुद में  कोई किस्मत का मारा है  एक टूटा दिल लेकर के फिरता है  तोपढ़ना जारी रखें “जो चोट खाकर बैठे है। “

खिड़की से दबे पाँव। 

खिङकी से दबे पाँव  भरी दोपहरी बिन अनुमति  चला आया गर्म हवा का स्पर्श  आकर ठहर गया गालों पर  आँखें मूँदे बैठी थी तुम्हारी याद लिए  लगा जैसे छुआ तुम्हारे हाथों ने  तुम चले आये हो झोंके संग  खिल गयी मुस्कान अधरो पर  दूर से तुमको आज बङा करीब पाया।        -आस्था गंगवारपढ़ना जारी रखें “खिड़की से दबे पाँव। “

तुम्हारी याद आँखों से। 

तुम्हारी याद आँखों से,  मोती बन गालों पर लुढ़क गयी।  थोड़ा फिर चली दो कदम,  लबों पर आकर ठहर गयी।  तुम्हारी नादान बातें,  निकली पिटारे से हर तरफ बिखर गयी।  जिन्हें सुनकर मैं कहती थी,  चुप रहो आज उन्ही से निखर गयी।       -आस्था गंगवार © 

तङपनें दो हर पहर। 

तङपनें दो हर पहर,  मुझे मेरी मोहब्बत जीने दो।  उसके संग बिताये हर लम्हे को,  दिल के जर्रे-जर्रे में कैद करने दो।  ना छेङ़ो मुझे बार-बार,  बस उसके साथ थोड़ा खामोश बैठने दो।  नहीं चाहिए झूठी मुस्कुराहटें,  मुझे उसकी चाहत के मोती पिरोने दो।        -आस्था गंगवार ©