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Category Archives: Poetry
मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।
मंजिल और आसान क्या मजाक हैमंजिलें क्षितिज की तरह होती हैजिनके होने का बस भ्रम होता हैमंजिल तक चलते चलते लगता हैकि बस चलते ही जा रहे हैमगर उस तक पहुंच नही रहे हैंज्यों ही लगता है कि पहुँच गयेत्यों ही मंजिल अपना रूप बदल लेती हैऔर जिंदगी धक्के मारकर कहती हैयह मंजिल नही हैंपढ़ना जारी रखें “मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।”
मेरे गूंगे शब्द
शून्य का रंग
तुम्हारे प्रेम मे रंगी
इस बार लौटकर मत जाना ।
तुम आओ तो इस बार लौट कर मत जाना। मन के बगीचे में हरियाली तुम्ही से खिले फूलों को फिर से नहीं है मुरझाना। तुम बिन हर एक क्षण है पतझड़ अकेले तुम बिन अब नहीं है एक पल बिताना। तुम आओ तो इस बार लौट कर मत जाना। तुम बिन हाल एेसा जैसे पानीपढ़ना जारी रखें “इस बार लौटकर मत जाना ।”
तुम्हारी मुस्कान हो मेरा जीवन हो।
जिस क्षण तुम मुझे स्वयं से अलग करो, वह मेरे जीवन का अन्तिम क्षण हो। न चाह रहे फिर कुछ पाने की, मृत्यु पार भी सिर्फ तुम ही तुम हो। विलग होकर तुमसे मिले अमरता, हँसकर वह भी मुझे अस्वीकार हो। या दे ईश्वर सारा जग मुझको तुम बिन, कोई स्वार्थ कभी न तुमसे बढ़करपढ़ना जारी रखें “तुम्हारी मुस्कान हो मेरा जीवन हो।”
शिक्षा, शिक्षा रही नहीं।
शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं, व्यापार बना अब डाला है। मंदिर कहलाता था विद्यालय, अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है। व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ, संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे। रटने की पद्धति का जमाना है, नवाचार कैसे कर पायेंगे। साधन नहीं बढ़कर जीवनमूल्य से, सिखलाने वाला गुरु अब रहा नहीं। माँ भी दूसरों सेपढ़ना जारी रखें “शिक्षा, शिक्षा रही नहीं।”
बेफिक्र हो चली थी।
बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था पर सुकुन था एक दिन में महीनों केपढ़ना जारी रखें “बेफिक्र हो चली थी। “
जब तलक चोट न लगे।
जब तलक चोट न लगे, मन गान नहीं करता। कलम प्यासी है लिखने को, मगर ये पथ आसान नहीं लगता। -आस्था गंगवार ©