कब से लिये बैठी थी उम्मीदें,
रोशनी अब आयी है।
पड़ा था परदा अँधेरे का ,
काली घटा छँट आयी है।
चमक रहा सूर्य गगन में,
इरादों में जान आयी है।
निराशा का धुंआ उङ़ गया,
हौसले की नहीं अब कमतायी है।
-आस्था गंगवार ©
KUCH RANG ZINDAGI KE With astha gangwar
भावनाओ और अनुभवो की माला को शब्दो के मोती से पिरोती हूँ, जिन्दगी के कुछ पन्नो को कागज पर उकेर देती हूँ।कुछ बातें जिन्हें कह नहीं सकती उन्हें एक नया रूप देती हूँ, ऐसी ही किसी गहरी सोच के साथ एक नयी कविता लिख देती हूँ।
Loved it astha 😊😊 well written
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Thank you
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बढ़िया है
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Sukriya
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bahut khub
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Sukriya
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