कब से लिये बैठी थी उम्मीदें, रोशनी अब आयी है। पड़ा था परदा अँधेरे का , काली घटा छँट आयी है। चमक रहा सूर्य गगन में, इरादों में जान आयी है। निराशा का धुंआ उङ़ गया, हौसले की नहीं अब कमतायी है। -आस्था गंगवार ©
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तेरे बिना दिन मेरा नहीं बुझता।
तेरे बिना दिन मेरा नहीं बुझता, तेरे बिना रात नहीं जलती। एक लम्हा लगे गुजर गयी सदियां, तेरे बिना ये साँसे भी नहीं चलती। -आस्था गंगवार ©
सोये भी उनको याद कर थे।
सोये भी उनको याद कर थे, जागकर भी उन्ही का चेहरा तलाशते हैं। अभी उनसे ख्वाब में मिलकर आये हैं, अब फिर बेकरार मिलने को तरसते हैं। -आस्था गंगवार ©
मुझे न बसंत भाता है।
मुझे न बसंत भाता है, न ही बहारे अच्छी लगती है। सब कुछ इन्द्रधनुषी होकर भी, मन के पतझङ की पीङा मुझे डसती है। आग लगी है जज्बातो की अंदर, नीरसता बर्फ सी जमी फिर भी नहीं पिघलती है। सब मसाले है पास मेरे खुशियां पकाने के, जिन्दगी फिर भी फीकी चाय लगती है । पढ़ना जारी रखें “मुझे न बसंत भाता है। “
जब भी ठोकर देती है जिन्दगी।
जब भी ठोकर देती है जिन्दगी, मैं एक पल को हताश हो जाती हूँ। सारी सकारात्मकता भूलकर, नकारात्मकता के चंगुल में फंस जाती हूँ। फिर कुछ क्षण तक बुरे लम्हे याद आते हैं, लेकिन खुद को समझाकर संभल जाती हूँ। कहती हूँ स्वयं से जीवन की परीक्षाएं है ये, और हर बार मुसीबतों से ऐसेपढ़ना जारी रखें “जब भी ठोकर देती है जिन्दगी। “
हर रोज देश गन्दा करेंगे।
हर रोज देश गन्दा करेंगे, मगर आज देशभक्ति दिखायेंगे। हर रोज नारी का अपमान करेंगे, तो बताओ आज कैसे भारत माँ का सम्मान बढायेेेगें। हर रोज क्रांतिकारियों का नाम सुनकर रक्त ठंडा पड़ा है, तो फिर आज एक दिन में लहु कैसे उफनायेंगें। हर रोज प्रति क्षण न जाने कितनी औरतें अपनी आबरू खोती है, पढ़ना जारी रखें “हर रोज देश गन्दा करेंगे। “
शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें
श्वेत, सर्द आनन्दमय चाँद की मोहब्बत भरी रात या कहूँ दर्द भरी रात इस चमकीली रात में बूँद बूँद झरती चाँदनी जहां चाँद से जुदा होती सुदूर धरती पर कहीं जाकर दर -ब -दर ठिकाना ढ़ूढ़ती कभी घास पर जा बैठती कभी फूलो की पंखुड़ियों पर सजती दूर धरा से चाँद को निहारती होकर रागमयपढ़ना जारी रखें “शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें “
जो चोट खाकर बैठे है।
जो चोट खाकर बैठे है वो शायर बन बैठे है टूटे दिल के सारे टुकड़े अल्फाजो से जोड़ बैठे है हाल ए दिल जमाने में सुनाने और जाये कहां कोरे पन्नो के सिवा सब मशरूफ बैठे है कोई मशगूल है खुद में कोई किस्मत का मारा है एक टूटा दिल लेकर के फिरता है तोपढ़ना जारी रखें “जो चोट खाकर बैठे है। “
कैसे लिख दूँ।
कैसे लिख दूँ प्रेम गीत आज, कल रोते बचपन को देखा था। उसकी पीड़ा लेकर फिरती हूँ, जिसे एक एक निवाले को तरसते देखा था। आँखों में न जाने कितनी उम्मीदें थीं, उसको आते जाते चेहरों को पढ़ते देखा था। कल क्या होगा कैसे सोचती, आज क्या खायेगी इस चिन्ता में जीते देखा था। कैसेपढ़ना जारी रखें “कैसे लिख दूँ। “
एक कवि की संवेदना।
एक कवि की संवेदना जो है सीमा से परे दूसरों की पीङा में भी अपने दर्द से रहते हैं जुड़े सामान्य परिस्थिति को भी असाधारण नजरिये से देखते जो कोई नहीं देख पाता वो दृश्य कविता बनकर उभरते हर लम्हे को थामकर कागज पर शब्द बनाकर कैद करते भावनाओं के संसार में खोकर जीवन कापढ़ना जारी रखें “एक कवि की संवेदना। “