मंजिल भी दूर थी,
मुकाम भी अधूरा था।
जिन्दगी की राह में,
गम के बादलो का घेरा था।
दिल भी टूटा बिखरा हुआ,
और बिल्कुल अकेला था।
जिंदा हूँ इसी से जमाना,
मुझे देख हैरत में था।
जीने की रोशनी पर,
कोहरे की धुंध का पहरा था।
मुरझा गये थे जिन्दगी के फूल,
सूरज भी मुझसे ठिठोली करता था।
उम्मीद की खिङकी पर ये आवारा दिल,
किरणो की राह तके बैठा था।
आँखें तलाशती थी खुशियो का गुलशन,
बेबस मन सावन की बहारो को ढूँढता था।
मंजिल भी दूर थी,
मुकाम भी अधूरा था।
-आस्था गंगवार
वाह-वाह,
बहुत खूब आस्था जी!
दिल की गहराई से लिखा है!
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बहुत धन्यवाद आपका
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स्वागत है आस्था जी
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Maza aa gaya padh kar… bahut khoob
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बहुत शुक्रिया आपका 😊
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Manjil b mil jayegi,.mukam b pura ho jayega….mat haar himmat apni, umeed ka sabera b aayega……..beutiful post….awesom
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Thank u so much….
And very nice lines…. 🙂
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My pleasure 🙂
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कविता बहुत हि खुब लिखी है ।।।
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बहुत धन्यवाद आपका 😊
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बहुत खूब
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शुक्रिया
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Nyc
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Thanks
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wah kya baat hai…adhbhut
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Dhanyabad
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Vah vah Astha dear such an amazing lines👌😘😘😘
“Manjil or Mukaam”
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Thank u
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Beeti bibhari bishari deyo age ki sudhi leyo……nicely written poem….kavitri priye astha gangwar ji…
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क्या खूब लिखा है बहुत अच्छा
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