बचपन से पापा की कली रही हूँ
माँ के लाङ और दुलार में पली बढी हूँ
अभी सब पर अपना हुक्म चलाती हूँ
छोटी छोटी बातो पर घर में ऊधम मचाती हूँ
दोस्तो के साथ कहीं भी बाहर जाती हूँ
किसी की बंदिशो में ना बांधी जाती हूँ
कुछ समय बाद समां ही अलग होगा
जहाँ खेली कूदी वही आँगन छोङकर जाना होगा
एक हमसफर के साथ उसके घर जाना होगा
उसके परिवार को अपनाना होगा
इस एहसास से अक्सर सहम सी जाती हूँ
थोङा सा रोकर फिर से मुस्कुराती हूँ
छोङो ये सब बातें वर्तमान में लौट आती हूँ।
-आस्था गंगवार
Bachpan se papa ki kali rhi hu
Ma ke laad aur dular me pali bdhi hu
Abi sb pr apna hukm chlati hu
Choti choti bato pr ghr me oodham mchati hu
Dosto ke sath khi b bahr jati hu
Kisi ki bandisho me na bandhi jati hu
Kuch samay bad sama hi alg hoga
Jaha kheli koodi wahi angan chhodkr jana hoga
Ek hmsafar ke saath uske ghr jana hoga
Uske privar ko apnana hoga
Is ahsas se aksar saham si jati hu
Thoda sa rokr fir se muskurati hu
Chhodo ye sb bate wartman me laut ati hu.
-Astha gangwar
जी बिल्कुल| वर्तमान में लौट आना ही सर्वोचित है| क्योंकि कुछ विचार हमें अक्सर विचलित कर के छोड़ देते हैं|
और आस्था, आपकी कवितायें काफ़ी अच्छी हैं| आप ऐसे ही आगे बढ़ती रहें, मैं इसकी कामना करता हूँ| 🙂
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धन्यवाद
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