मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।

मंजिल और आसान क्या मजाक हैमंजिलें क्षितिज की तरह होती हैजिनके होने का बस भ्रम होता हैमंजिल तक चलते चलते लगता हैकि बस चलते ही जा रहे हैमगर उस तक पहुंच नही रहे हैंज्यों ही लगता है कि पहुँच गयेत्यों ही मंजिल अपना रूप बदल लेती हैऔर जिंदगी धक्के मारकर कहती हैयह मंजिल नही हैंपढ़ना जारी रखें “मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।”

किसी पेड़ की छाँव में। 

किसी पेड़ की छाँव में  किसी की राह तकते  कोई लङकी बैठती है  बिल्कुल वैसे ही मैं हूँ अभी  खिङकी तकती कभी  दरवाजे की आहट सुनती कभी  लगता किसी का इन्तजार हो  पर अभी तो कोई आने वाला नहीं  कोयल की आवाज आती है  सुबह बैचैन रहती है  शाम को बाँबरी हो जाती है  यूँपढ़ना जारी रखें “किसी पेड़ की छाँव में। “

कहते हैं कविता में लय होनी चाहिए। 

कहते हैं कविता में  लय होनी चाहिए  अब लय ढूंढकर  किसी कोने में जाकर  प्रकृति के रमणीक  नजारों में खोकर  लिखती हूँ जब कभी  लय तो अक्सर  मुझमें से कहीं आकर  बन ही जाती है  मगर न जाने क्यों  अफसोस रह जाता है  उन अधूरे जज्बातो का  जो लय ढूंढने की धुन में  किसी वीरानेपढ़ना जारी रखें “कहते हैं कविता में लय होनी चाहिए। “

हां मैंने जिन्दगी जीना सीख लिया। 

लङखङाते कदमो को संभालना सीख लिया  बहते आँसुओ को थामना सीख लिया  खामोश रहकर पीङा को सहना सीख लिया  दर्द की बारिश में मुस्कुराना सीख लिया  हां मैंने जिन्दगी जीना सीख लिया।  कश्मकस के चक्रवात में ढलना सीख लिया  चुनौती की आँधियो संग बहना सीख लिया  निराशा की धुंध में आशा को पिरोना सीख लिया पढ़ना जारी रखें “हां मैंने जिन्दगी जीना सीख लिया। “

जीने का अंदाज बदल डाला। 

लिखने बैठूं कभी कभी,  लगता सब कुछ लिख डाला।  अभी मिला है जीवन रस,  संग प्रेम प्याला पी डाला।  नहीं है भाये कृत्रिम रंग,  जा तितली से सौदा कर डाला।  बीच भँवर जब फस गयी नैया,  समुन्दर से हाथ मिला डाला।  जो फैलाये अँधेरा सघन,  मोम सा पिघलाकर जला डाला।  आता नहीं सुर, ताल, संगीत, पढ़ना जारी रखें “जीने का अंदाज बदल डाला। “

एक नयी कविता 

भावनाओ और अनुभवो की माला को  शब्दो के मोती से पिरोती हूँ  जिन्दगी के कुछ पन्नो को  कागज पर उकेर देती हूँ  कुछ बातें जिन्हे कह नहीं सकती  उन्हें एक नया रूप देती हूँ  ऐसे बहुत से बिनकहे एहसास है  जिन्हे समझने की कोशिश करती हूँ  ऐसी ही किसी गहरी सोच के साथ  एक नयीपढ़ना जारी रखें “एक नयी कविता “

जब भी तेरा विचार आता है। 

सुगन्धित हो उठता मेरा जीवन  खिल उठता मेरा यौवन  बढ जाता मेरे ह्दय का स्पन्दन  जब भी तेरा विचार आता है।  छा जाते है तेरी स्मृति के घने बादल  ठहरता नहीं एक पल मेरा आंचल  मन लेकर हिलोरे हो उठता चंचल  जब भी तेरा विचार आता है।  नयन बरसते ऐसे जैसे बरसता अम्बर  प्रेम समायेपढ़ना जारी रखें “जब भी तेरा विचार आता है। “

पल पल मेरा दिल घबराता है। 

पल पल मेरा दिल घबराता है  ऐसे हाल में अब जिया नहीं जाता है  कैद हूँ पंछी सी पिंजङे में  ऐसे आशियाने में अब रहा नहीं जाता है  पल पल मेरा दिल घबराता है।  अपनी भावनाओ को व्यक्त नहीं कर पा रही  दुनियादारी से बेगानी होती जा रही  कोई अपना बिन समझे ही चला जातापढ़ना जारी रखें “पल पल मेरा दिल घबराता है। “

मैंने देखा है….. 

अपने कर लेते है जब दुश्मनो से समझौता  मैंने आग के बगैर आशियाना जलते देखा है  सच्ची बफा न मिले अगर चाहने वाले की  मैंने बिना प्रहार के दिल को टुकङो में टूटते देखा है  लङते है दो वतन जमींनो की खातिर  मैंने फूलो के गुलशन में काँटो को पलते देखा है  दूर चला जातापढ़ना जारी रखें “मैंने देखा है….. “

संजोने की ख्वाहिश 

ना मैं कुछ पाने की ख्वाहिश में लिखती हूँ ना मैं कुछ खोने की ख्वाहिश में लिखती हूँ  मैं तो बस मोहब्बत में,  अपनी और तेरी खातिर लिखती हूँ  ढूँढती हूँ शब्दो में मोहब्बत के रंग,  मैं तो कविताएँ उन शब्दो के रंग से,  तेरी तस्वीर बनाने खातिर लिखती हूँ  तेरे मेरे बीच में जोपढ़ना जारी रखें “संजोने की ख्वाहिश “