नारी का स्थान। 

यदि एक औरत  अपने आत्मसम्मान के लिए  अपने जीविकोपार्जन के लिए  स्वयं काम करने का जिम्मा लेती है  सिर उठाकर चलती है  अपनी मर्ज़ी से जीती है  तब तमाम दूसरी औरतें  जो घर बैठकर  पति की कमाई पर फूलती है  उस एक औरत के खिलाफ  दुनियादारी की अफवाहें फैलाती है  उसको हीनता की दृष्टि सेपढ़ना जारी रखें “नारी का स्थान। “

खिड़की से दबे पाँव। 

खिङकी से दबे पाँव  भरी दोपहरी बिन अनुमति  चला आया गर्म हवा का स्पर्श  आकर ठहर गया गालों पर  आँखें मूँदे बैठी थी तुम्हारी याद लिए  लगा जैसे छुआ तुम्हारे हाथों ने  तुम चले आये हो झोंके संग  खिल गयी मुस्कान अधरो पर  दूर से तुमको आज बङा करीब पाया।        -आस्था गंगवारपढ़ना जारी रखें “खिड़की से दबे पाँव। “

मुझे डर है। 

मेरी कविताएं  कहीं भीड़ में  किसी चौराहे पर  आते जाते वाहनों की तरह  कुछ पल ठहरकर  दूसरी राह पकड़कर  कहीं गुम न हो जायें  मुझे डर है। मशरूफियत बहुत है  जिन्दगी भी मुश्किल है  खुद को पढ़ने के लिए  जज्बातों को समझने के लिए  उलझी कड़ियां सुलझाने के लिए  वक्त कमतर है  इस मशगूल सफरपढ़ना जारी रखें “मुझे डर है। “

मेरा मन और पतझङ। 

हवा मैं भीनी खुश्बू  चटखती कलियाँ खिलते फूल  झरता पतझड़ और सूखे पत्ते  शान्त मन को विचलित करते हैं  सैकड़ों प्रश्न होते हैं जेहन में  कलियों के यौवन पर नजर पङे  फूल सुन्दरता से अपनी ओर खीचें  इससे मन की उथल-पुथल न गयी  और मैं नीरस सी रह गयी  मुझे खींचा तो उस पतझङ ने  जहाँपढ़ना जारी रखें “मेरा मन और पतझङ। “