तू बन गया है रूह मेरी। 

तू बन गया है रूह मेरी,  जिस्म की बात अब करूं कैसे।  कम पङ जाते हैं लब्ज मोहब्बत में तेरी,  तुझे बिन अल्फाज अब लिखूं कैसे।  तेरे आने से खिल गयी है बहारे,  बिन तेरे कटे पतझङ का जिक्र अब करूं कैसे।  उजाले हो गये रातों में भी संग तेरे,  ढलती शाम से अकेले अबपढ़ना जारी रखें “तू बन गया है रूह मेरी। “

सजा के अपने ओठों पर..

सजा के अपने ओठों पर,  आओ तुम्हें मैं गीत बना लूं।  मुस्कुरा दो देखकर तुम,  आओ तुम्हें मैं गुनगुना लूं।  भुला दो अपने गम पुराने,  आओ तुम्हें मैं महफिल बना लूं।  इकलौता दिल मुझको दे दो,  आओ तुम्हें मैं जिंदगी बना लूं।  तुम मिले तो हुयी दुआ कबूल,  आओ तुम्हें मैं खुदा बना लूं।   पढ़ना जारी रखें “सजा के अपने ओठों पर..”

कभी न जाओ… 

जब तुम मिलने आते हो  मैं फूल सी खिल जाती हूँ  फिर जाने की बात करते हो  और मैं उदास हो जाती हूँ  काश ऐसा हो जाये एक दिन  तुम आओ मेरे लिए….  और फिर कभी न जाओ।     -आस्था गंगवार © 

नहीं ढूंढा तुम्हें चिराग लेके.. 

नहीं ढूंढा तुम्हें चिराग लेके,  कुछ तो मेरी दुआओ का असर था।  मेरी खुशी में जिये मेरा हमसफर,  यही एक सपना पल पल बुना था।  मुकम्मल ख्वाब तुमको पाकर हुआ,  मेरा खुदा मुझपे कितना मेहरबान है।  भुला दिये बीते कल के साये,  तुमको ही अब अपनी खुशी चुना है।       -आस्था गंगवार © 

प्रियवर, आओ…. 

प्रियवर, आओ सुलझाये मसला  नहीं करते है ऐसे झगङा  तुम हमसे हो रूठ के बैठे  हम तुमको, तुम हमको मनाओ थोङा।  अभी -अभी प्यार की बरसात हुयी थी  फिर किस बात पर अपनी तकरार हुयी थी  यूं न जाओ मुँह फेर कर हमसे  हम ठहरे कुछ, तुम भी ठहरो थोङा।  हमारे प्यार के दो मीठेपढ़ना जारी रखें “प्रियवर, आओ…. “

वो मेरे दिल से वाकिफ…. 

वो मेरे दिल से वाकिफ  मैं उसकी रूह से वाकिफ  होती कुछ पल की तकरार  फिर उमङता बेइंतहा प्यार  इश्क है बंदिशो से आजाद  शब्दो से नहीं होता उसे आघात  मोहब्बत की नहीं कोई परिभाषा  एहसास ही है उसकी भाषा  जो दो दिल है समझते  एक दूसरे को है लिखते पढते  ये जिस्म है बसपढ़ना जारी रखें “वो मेरे दिल से वाकिफ…. “

प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है। 

हम तुम्हारे प्रेम में खुद को भुलाये बैठे है  प्रतीक्षा में चौखट पर नयन टिकाये बैठे है  ह्दय के पटल पर तुम्हारी छवि बसाये बैठे है  प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है। जीवन की कश्ती में हम तुम्हे मांझी बनाये बैठे है  अपनी खुशियो के समुन्दर में हम तुम्हे पतवार दियेपढ़ना जारी रखें “प्रियवर हम तुम्हे अपने अस्तित्व का दर्पण बनाये बैठे है। “

देखकर तेरे नयनो में… 

देखकर तेरे नयनो में जमाना भूल जाती हूँ  तेरी यादो के गुलिस्तां में रमण करती जाती हूँ  पकङकर हाथ तेरा खुद को बङा महफूज पाती हूँ  कदम तुझ ओर बढते ही सारे गम पीछे छोङ आती हूँ  देखकर तेरे नयनो में जमाना भूल जाती हूँ।  लगकर तेरे सीने से बङा सुकून पाती हूँ  लेकर अधरोपढ़ना जारी रखें “देखकर तेरे नयनो में… “

जमाना कह रहा। 

जमाना कह रहा  उसे ही क्यो महसूस करती जाती है  जज्बात को अल्फाजो से क्यो पिरोती जाती है  उसमें खोकर आँखें क्यो खाली कर जाती है  उसे ही अब क्यों लिखती जाती है।  जमाना कह रहा  अपने पिया की यादो में इतना क्यों खोती जाती है  सुबह को शाम और शाम को सुबह बताती है पढ़ना जारी रखें “जमाना कह रहा। “

आफताब की एक किरण 

आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी  अलसायी थी बरसो से ये गुमनाम जमीन  समेटे थी ढेरो कहानियाँ होकर संगीन  आज सुबह सवेरे अोस की बूंद सी खिल आयी थी  आफताब की एक किरण दिल की खिङकी पर आयी थी।  उजङे बगीचे को मिला था आज फूलो का उपहार  मिट गया थापढ़ना जारी रखें “आफताब की एक किरण “