मेरा ह्दय 

तेरे चक्षु के प्रतिबिम्ब,  को देख ह्दय मचलता है  बसता है वहां प्रेम का सागर,  नदिया बन मिलने को बहता है  तेरी स्मृति के मौसम में,  कभी बसंत के फूलो सा खिलता है  तेरी यादो की उधेङबुन में,  कभी पतझङ बनकर झङता है  तेरे प्रेम का आलोक पाकर , कभी दीपक बनकर जलता है  विरहपढ़ना जारी रखें “मेरा ह्दय “