मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।

मंजिल और आसान क्या मजाक हैमंजिलें क्षितिज की तरह होती हैजिनके होने का बस भ्रम होता हैमंजिल तक चलते चलते लगता हैकि बस चलते ही जा रहे हैमगर उस तक पहुंच नही रहे हैंज्यों ही लगता है कि पहुँच गयेत्यों ही मंजिल अपना रूप बदल लेती हैऔर जिंदगी धक्के मारकर कहती हैयह मंजिल नही हैंपढ़ना जारी रखें “मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।”

ओ मेरे मनमोहना… 

ओ मेरे मनमोहना  तुम बिन जाऊँ कहाँ  रास न आये कोई बगिया  न ही भायें प्यारी सखियां  जमुना से है हाल भये  बरसों बीते दरस किये  आ जाओ श्याम रास रचैया  पार लगाओ मन की नैया  तुम बिन कटे न मेरी रैना  आये न एक पल भी अब चैना  विरह की दूरी सही न जाये पढ़ना जारी रखें “ओ मेरे मनमोहना… “