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Category Archives: Social poems
मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।
मंजिल और आसान क्या मजाक हैमंजिलें क्षितिज की तरह होती हैजिनके होने का बस भ्रम होता हैमंजिल तक चलते चलते लगता हैकि बस चलते ही जा रहे हैमगर उस तक पहुंच नही रहे हैंज्यों ही लगता है कि पहुँच गयेत्यों ही मंजिल अपना रूप बदल लेती हैऔर जिंदगी धक्के मारकर कहती हैयह मंजिल नही हैंपढ़ना जारी रखें “मंजिलें क्षितिज की तरह होती हैं ।”
शिक्षा, शिक्षा रही नहीं।
शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं, व्यापार बना अब डाला है। मंदिर कहलाता था विद्यालय, अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है। व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ, संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे। रटने की पद्धति का जमाना है, नवाचार कैसे कर पायेंगे। साधन नहीं बढ़कर जीवनमूल्य से, सिखलाने वाला गुरु अब रहा नहीं। माँ भी दूसरों सेपढ़ना जारी रखें “शिक्षा, शिक्षा रही नहीं।”
न्याय पर प्रश्नचिह्न
मेरे अन्दर की लेखिका, मुझे जला रही है। कई बार बैठे हुए ,सोते हुए यूँ लगता है जैसे फिर कोई दामिनी, मुझे पुकार रही है। कहने को कुछ , कलम विवश हो जैसे । शब्द स्तब्ध है , सहमे हुए है ऐसे। कागज भी शर्मिंदा है , स्वयं पर आवरण ओढ़कर । न्याय क्यों मौनपढ़ना जारी रखें “न्याय पर प्रश्नचिह्न”
हर रोज देश गन्दा करेंगे।
हर रोज देश गन्दा करेंगे, मगर आज देशभक्ति दिखायेंगे। हर रोज नारी का अपमान करेंगे, तो बताओ आज कैसे भारत माँ का सम्मान बढायेेेगें। हर रोज क्रांतिकारियों का नाम सुनकर रक्त ठंडा पड़ा है, तो फिर आज एक दिन में लहु कैसे उफनायेंगें। हर रोज प्रति क्षण न जाने कितनी औरतें अपनी आबरू खोती है, पढ़ना जारी रखें “हर रोज देश गन्दा करेंगे। “
नारी का स्थान।
यदि एक औरत अपने आत्मसम्मान के लिए अपने जीविकोपार्जन के लिए स्वयं काम करने का जिम्मा लेती है सिर उठाकर चलती है अपनी मर्ज़ी से जीती है तब तमाम दूसरी औरतें जो घर बैठकर पति की कमाई पर फूलती है उस एक औरत के खिलाफ दुनियादारी की अफवाहें फैलाती है उसको हीनता की दृष्टि सेपढ़ना जारी रखें “नारी का स्थान। “
जो चोट खाकर बैठे है।
जो चोट खाकर बैठे है वो शायर बन बैठे है टूटे दिल के सारे टुकड़े अल्फाजो से जोड़ बैठे है हाल ए दिल जमाने में सुनाने और जाये कहां कोरे पन्नो के सिवा सब मशरूफ बैठे है कोई मशगूल है खुद में कोई किस्मत का मारा है एक टूटा दिल लेकर के फिरता है तोपढ़ना जारी रखें “जो चोट खाकर बैठे है। “
कैसे लिख दूँ।
कैसे लिख दूँ प्रेम गीत आज, कल रोते बचपन को देखा था। उसकी पीड़ा लेकर फिरती हूँ, जिसे एक एक निवाले को तरसते देखा था। आँखों में न जाने कितनी उम्मीदें थीं, उसको आते जाते चेहरों को पढ़ते देखा था। कल क्या होगा कैसे सोचती, आज क्या खायेगी इस चिन्ता में जीते देखा था। कैसेपढ़ना जारी रखें “कैसे लिख दूँ। “
हिन्दी में हो या उर्दू में हो।
हिन्दी में हो या उर्दू में हो बस बात होनी चाहिए बाँट दिया है भाषा को भी धर्म के ठेकेदारों ने कहते हैं हिन्दी की जात हिन्दू और उर्दू मुसलमान होनी चाहिए। अब उन कहानीकारों शायरों, कवियों का क्या जो लिखते हैं साथ मिलकर भाषा से परे जज्बातों को इनको तो भाषाद्रोही या फिर देशद्रोही होनापढ़ना जारी रखें “हिन्दी में हो या उर्दू में हो। “
नारी की व्यथा।
नारी ही शक्ति नारी ही भक्ति नारी ही देवी नारी ही त्रिवेणी अपनी ही लाज बचाने को फिर क्यों है पांव में बेङी। नारी ही शान नारी ही अान नारी ही गंगा नारी ही तिरंगा रात के अंधेरे में लाचार समझ फिर क्यों किया जाता है नंगा। नारी ही गौरव नारी ही वैभव नारी हीपढ़ना जारी रखें “नारी की व्यथा। “