चुनावी चौपाल…. एक सतत् अभियान।

समर अपने सभी दोस्तों जुबैर, आशीष, मेघा,संध्या और कार्तिक के साथ कैंटीन में गप्पे लड़ा रहा था कि तभी अपर्णा भी आ गयी। उसने देखा कि आज सब चुनावी मुद्दे लेकर बैठे हुए थे वह दोस्तों की चौपाल कम चुनावी चौपाल ज्यादा लग रही थी। अपर्णा कम ही बात करती थी जब तक आवश्यक या कोई गंभीर बात न हो न के बराबर बोलती थी। समर उससे बहुत प्रभावित था वह उसका बहुत सम्मान करता था लेकिन बाकी दोस्त उसको अहंकारी, किताबी कीड़ा और न जाने क्या- क्या बोलते थे। ये सब उसके पीछे ही बोलते थे सामने बोलने की हिम्मत किसी में नहीं थी। खैर जुबैर आज बता रहा था कि कैसे लोग धर्म और जाति को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपना वोट मांग रहे हैं और विकास की बात, जमीनी मुद्दे उठाने की बात करने के बजाय अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। आशीष ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब तक धर्म का राजनीतिकरण करने वाले प्रतिनिधि बनकर खड़े होते रहेंगे और उनको जिताकर हमारा नेतृत्व करने की शक्ति देते रहेंगे तब तक इस देश का और उस क्षेत्र विशेष का विकास सम्भव ही नहीं है। वह सिर्फ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगें और अपनी तिजोरी भरते रहेगें। मेघा बोली आशीष का कहना ठीक है हमको यह देखना होगा कि जो हमारे क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए खड़े हुये हैं उन्होंने हमारे क्षेत्र की समस्याओं को उठाया है या नहीं। इस समय यह सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है कि जो जन प्रतिनिधि धर्मवाद, जातिवाद को बढ़ावा देकर अपना वोट बैंक पाने का उद्देश्य लेकर लेकर घूम रहे हैं उनको तो हमने वोट करना ही नहीं है क्योंकि वे तो समाज में घृणा फैलाकर सत्ता हासिल करके अपना स्वार्थ पूरा कर लेंगे नुकसान तो आम जनता का होगा। न विकास हो सकेगा न ही आपसी सद्भावना बढ़ सकेगी। कार्तिक ने भी अपना पक्ष रखा और कहा कि ये सब अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अभी इतने सक्रिय हैं चुनाव जीतने के बाद इनमें से पाँच साल कोई झाँकने नहीं आता कि कहां पानी नहीं है और कहां खाना। अभी इसकी सम्पति और पाँच साल बाद इनकी सम्पति में जमीन आसमान का फर्क होगा। जनता का पैसा जनता के लिए इस्तेमाल न करके अपनी जागीर समझने लगते हैं। इनके ऊपर प्रशासनिक व्यक्ति न हो तो एक पैसा विकास पर खर्च न सके। प्रशासनिक अधिकारी भी कौन सा उजले चरित्र के है मिल बांट के खाते हैं सब। ऊपरी स्तर से लेके निचले स्तर तक यही हाल है। देखो क्या होता है इस देश का । इस पर संध्या ने कार्तिक को आँख दिखाते हुए कहा कि इस तरह पल्ला झाड़ लेने से क्या होगा। भारत हम सबसे मिलकर बना है यदि हम व्यक्तिगत तौर पर भी कुछ उपलब्धि हासिल करते हैं तब हम सिर्फ अपना नहीं भारत का भी मान बढ़ा रहे होते हैं। देश हमसे जुड़ा है हम उससे पृथक होकर नहीं सोच सकते इसलिए मेरा मानना कि दूसरों से आशा किये बिना स्वयं अपना योगदान देना जितना हम दे सकते हैं। शिक्षित व्यक्तियों को और जो वास्तव में जन सेवा करना चाहता है उसको राजनीति में आना होगा। क्या पता कालेज के बाद हममें से कोई एक हो। सब उसकी बात पर हंस पड़े। अपर्णा जो अब तक नहीं बोली थी सब कुछ गंभीरतापूर्वक सुन रही थी उसने कहा क्या ये सिर्फ कैंटीन में विचार -विमर्श करके खत्म करने का विषय है। यदि आपके विचार कर्म का रूप नहीं लेते तब तो व्यर्थ है विचार विमर्श करना। विचार -विमर्श, विश्लेषण तो सब करना चाहते हैं लेकिन सामाजिक कार्य में भागीदारी कोई नहीं निभाना चाहता। क्या यह गंभीर मुद्दा स्वयं जागरूक होने तक सीमित रहना चाहिए ? क्या हमें दूसरों को जागरूक नहीं करना चाहिए ? क्यों न हम हर रविवार जब हमारा कालेज बन्द रहता है सबको जागरूक करने की पहल करे। क्या तुम सब इसमें मेरा साथ देने को तैयार हो। सब उसकी बात से सहमत थे कि परिवर्तन विचार-विमर्श करने से नहीं आता बल्कि उन विचारों को जीवन में उतारने से तथा कर्म का रूप देने से आता है। समर तो उसका फिर से कायल हो गया अब सोच रहा था कि मेरे चुनाव का क्या होगा क्या मैं अपर्णा के मन का प्रतिनिधि बन सकूंगा। सबने उसका साथ देने का निर्णय लिया, समर जो अपर्णा के ख्यालों में खोया था उसको सबने हिलाया तो घबराके बोला हाँ मैं तो हमेशा तैयार हूँ किसी को उसकी बात का मतलब समझ नहीं आया लेकिन सब तैयार थे एक ऐसा सतत् अभियान चलाने के लिए जो जब तक जारी रहेगा जब तक धर्म और जाति का राजनीतिकरण करने वाले जन प्रतिनिधि बनकर खड़े होते रहेंगे।
-आस्था गंगवार

Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

its me astha gangwar . I m founder of this blog. I love to write poems... I m a student of msc to chemical science.... read my poems on facebook - https://www.facebook.com/asthagangwarpoetries/ follow me on - I'm on Instagram as @aastha_gangwar_writing_soul

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