शिक्षा, शिक्षा रहीं नहीं,
व्यापार बना अब डाला है।
मंदिर कहलाता था विद्यालय,
अब वहाँ स्वार्थ ने बागडोर संभाला है।
व्यवहारिक शिक्षा का पतन हुआ,
संस्कार जीवन में कैसे आयेंगे।
रटने की पद्धति का जमाना है,
नवाचार कैसे कर पायेंगे।
साधन नहीं बढ़कर जीवनमूल्य से,
सिखलाने वाला गुरु अब रहा नहीं।
माँ भी दूसरों से जीतना सिखाती है अब,
स्वयं से कैसे जीतें बतलाने वाला कोई मिला नहीं।
मनुष्य जीवन हो जायेगा नष्ट,
जाकर महापुरुषों से ही कुछ सीख लो।
मानवता से बड़ा नहीं कोई धर्म जग में,
जीवन मिला परमार्थ को महत्व अब समझ लो ।
कवियित्री -आस्था गंगवार ©
खूबसूरत सन्देश देती आपकी कविता।सचमुच शिक्षा व्यापार बन गया है।👌👌
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धन्यवाद
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True astha…
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Exact situation of today’s education system…
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Loved the topic.
Beautifully written Astha….keep going
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Thank you so much
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Sahi kaha
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बहुत खूब
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nice
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Thanks
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वाकई में शिक्षा का निजीकरण, शिक्षा को बाजार की ओर ऐसा धकेल रहा है जहाँ अँधेरा ही अँधेरा है…
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Ji janab
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The state of education is definitely in crisis. It’s not about knowledge, it’s about how to beat the exam. It’s not an education system but an exam system. It’s about achievement and no longer about the process.
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