मुझे न बसंत भाता है,
न ही बहारे अच्छी लगती है।
सब कुछ इन्द्रधनुषी होकर भी,
मन के पतझङ की पीङा मुझे डसती है।
आग लगी है जज्बातो की अंदर,
नीरसता बर्फ सी जमी फिर भी नहीं पिघलती है।
सब मसाले है पास मेरे खुशियां पकाने के,
जिन्दगी फिर भी फीकी चाय लगती है ।
-आस्था गंगवार ©
आग लगी है जज्बातो की अंदर,
नीरसता बर्फ सी जमी फिर भी नहीं पिघलती है…बहुत खूब लिखा है।
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धन्यवाद
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Nice
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Thank you
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सब मसाले है पास मेरे खुशियां पकाने के,
जिन्दगी फिर भी फीकी चाय लगती है ।
Ye pankti vakai umda likhi
Mja a Gya pdhkr
_ Confused Thoughts
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धन्यवाद आपका 😊
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Aaj bhi teri poems yaad karta hu or Teri saari poems pdta hu.. Tu hmesa khus rehna Tani
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Sagar
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👍👍 waah astha ji bahut hi khoob likha apne
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Sukriya apka
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