जो चोट खाकर बैठे है। 

जो चोट खाकर बैठे है 

वो शायर बन बैठे है 

टूटे दिल के सारे टुकड़े 

अल्फाजो से जोड़ बैठे है 

हाल ए दिल जमाने में 

सुनाने और जाये कहां 

कोरे पन्नो के सिवा 

सब मशरूफ बैठे है 

कोई मशगूल है खुद में 

कोई किस्मत का मारा है 

एक टूटा दिल लेकर के फिरता है 

तो दूजे टूटे दिल का सौदा करने को बैठे है 

आशिकी में है बस दर्द ही दर्द 

खुशी का नाम झूठा है 

जिसने की वो तो लुट ही गया 

जिसने ना की वो करने को बैठे है 

मालूम है कि दर्द ही मिलना है 

मुकम्मल हो भी नहीं सकती 

साथ छोङ चाहने वाले का 

मुकद्दर का हाथ थामे बैठे है 

अजीब है ये खेल जज्बातो का 

साँसे तो आती जाती है 

मगर किसी और के नाम से 

ना जाने किसका दिल सीने में छुपाये बैठे है। 

     -आस्था गंगवार © 

Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

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