जहां से होकर के गुजरी थी,
वहीं आकर खङी हो जाती हूँ ।
कदम भी थकते नहीं है,
बस खामोश हो जाती हूँ ।
भागती हूँ जिस हकीकत से,
बार-बार उसी से टकराती हूँ ।
देखती हूँ खुद को आयने में,
लगता है कुछ तलाशती हूँ।
समझती हूँ जिन्दगी को,
खुद को भी समझाती हूँ ।
बार-बार भटकती हूँ,
फिर वहीं आकर खङी हो जाती हूँ ।
-आस्था गंगवार ©
Jindagi ke ISS mayavi phlu ko achhe dhang SE pesh Kia apne!
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Sahi kaha 🙂
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धन्यवाद कविता पढ़ने के लिए और महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए 🙂
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🙏🙏
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This is just too good. Congrats.
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Thank you very much
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Bahut hi khoobsurat
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बहुत धन्यवाद आपका
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खूबसूरत रचना
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धन्यवाद आपका 😊
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Bahut khub👌👌👌
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Bahut dhanyabad apka
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ये सिर्फ़ एक कविता नही है, एक धीमी सी हरकत है मन के हलात और सोच की ताक़त के बीच में | काफ़ी अच्छा प्रयोग है, इन चन्द शब्दों का |
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सही अवलोकन किया 🙂
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This is beautiful
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Thank you
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You nailed it! 🙂
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Meri jindgi meri feelings ko aapne words de diye……☺☺☺ beautiful
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Bahut sukriya apka…
Meri kavita me ap khud ko dekh paye…. Isse behtar complement ek writer ke liye ni ho skta.. Mera likhna sarthak ho gya 😃
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आप के पास अद्भुत कल्पना शक्ति है आस्था जी, मन प्रसन्न हो गया, आपकी रचनाए पढ़ कर, सत्व, साधना और शब्द से आप एक दिन साहित्य को सार्थक कर पाएंगी, भविष्य के लिए शुभकामनाये
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बहुत धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए और रचनाओं को पढ़ने के लिए…. आपका लेखन भी उत्कृष्ट है…. पढा मैंने
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