जहां से होकर के गुजरी थी ।

जहां से होकर के गुजरी थी, 

वहीं आकर खङी हो जाती हूँ ।

कदम भी थकते नहीं है, 

बस खामोश हो जाती हूँ ।

भागती हूँ जिस हकीकत से, 

बार-बार उसी से टकराती हूँ ।

देखती हूँ खुद को आयने में, 

लगता है कुछ तलाशती हूँ।

समझती हूँ जिन्दगी को, 

खुद को भी समझाती हूँ ।

बार-बार भटकती हूँ, 

फिर वहीं आकर खङी हो जाती हूँ ।

    -आस्था गंगवार © 

Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

its me astha gangwar . I m founder of this blog. I love to write poems... I m a student of msc to chemical science.... read my poems on facebook - https://www.facebook.com/asthagangwarpoetries/ follow me on - I'm on Instagram as @aastha_gangwar_writing_soul

21 विचार “जहां से होकर के गुजरी थी ।&rdquo पर;

  1. ये सिर्फ़ एक कविता नही है, एक धीमी सी हरकत है मन के हलात और सोच की ताक़त के बीच में | काफ़ी अच्छा प्रयोग है, इन चन्द शब्दों का |

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  2. आप के पास अद्भुत कल्पना शक्ति है आस्था जी, मन प्रसन्न हो गया, आपकी रचनाए पढ़ कर, सत्व, साधना और शब्द से आप एक दिन साहित्य को सार्थक कर पाएंगी, भविष्य के लिए शुभकामनाये

    Liked by 1 व्यक्ति

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