तू रूठा तो लगा,
जिन्दगी की शाम हो गयी।
ठहर गये लब्ज जुबां पर ही,
खामोशी इन होंठों की गुलाम हो गयी।
सूखी थी आँखों की बंजर जमीं,
बिन मौसम ही आँसुओ की बरसात हो गयी।
दिल की धड़कनें भी थी खफा,
बरसा हो कहर ऐसी कयामत की रात हो गयी।
-आस्था गंगवार ©
KUCH RANG ZINDAGI KE With astha gangwar
भावनाओ और अनुभवो की माला को शब्दो के मोती से पिरोती हूँ, जिन्दगी के कुछ पन्नो को कागज पर उकेर देती हूँ।कुछ बातें जिन्हें कह नहीं सकती उन्हें एक नया रूप देती हूँ, ऐसी ही किसी गहरी सोच के साथ एक नयी कविता लिख देती हूँ।
बहुत दिनों बाद लिखा।बहुत खूब
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Sukriya 😊
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Waah
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Sukriya 😊
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सूखी थी आँखों की बंजर जमीं,
बिन मौसम ही आँसुओ की बरसात हो गयी–वाह क्या खूब लिखा है।
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Sukriya 😊
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काफी दिनों बाद लिखा लेकिन बेहद खूबसूरत लिखा
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शुक्रिया 😊
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Nice bahut khub
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Bahut khub.. wish you all the best..
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Thank you 🙂
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superb superb……..superb
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helpful
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