जब से तुम मिले हो
हम हम न रहे हैं
ये साँसे भी तुम्हारी है
और धङ़क भी तुम रहे हो।
बैठे-बैठे खो जाती हूँ
तुम में ही गुम हो जाती हूँ
अपनी तो कुछ खबर नहीं
हर जगह तुम ही मिल रहे हो।
तुम्हें ढूंढते हैं हर आहट में
अपनी ही किसी मुस्कुराहट में
कहने को तो अधर हमारे है
पर मुस्कुरा तुम रहे हो।
हवा के इन मादक झोंको से
जब भी जुल्फ मेरी लहराती है
लगता है दूर कहीं से तुम
बयार बनकर स्पर्श कर रहे हो।
डराती है जब भी तन्हाइयाँ
भागती हूँ हकीकत से
रूबरू कराती है तुम्हारी यादें
कि तुम साथ चल रहे हो।
-आस्था गंगवार ©
बहुत बढ़िया लिखा आपने—–बहुत खूब
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धन्यवाद
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खूबसूरत रचना…
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धन्यवाद
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बिरह को प्रकृति से बहुत शानदार जोड़ा है…
उत्तम कविता…👌👌
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बहुत बढ़िया
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bahut hi umda tarike se bayan kiya hai
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Bahut bahut dhanyabad
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Good one…
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