चलो बैठने चलते हैं
कहीं समुन्दर किनारे
कोई नई कहानी ढूंढ़ेगें
कोई नया एहसास लिखेंगे
वहाँ की आती जाती लहरों से
कुछ अनकही बातें करेंगे
वो मेरी आँखें पढ़ लेगा
मैं उसके इशारे समझ लूंगी
जब वहाँ के जर्रे-जर्रे से
मुलाकात पूरी हो जाएगी
तो फिर चलेंगे
किसी खण्डहर किनारे
पढ़ेंगे उसकी खामोशी
हर टीले में छुपी उदासी
जो कहना चाहता है अपनी बात
खुद में छुपे इतिहास का राज
जहाँ सदियो पहले थी चहल-पहल
अब वहाँ आते है टूटे हुये दिल
या जो है जिन्दगी से नाराज
या मुझ जैसे जो ढ़ूढ़ते है एकांतवास
जब वहाँ के जर्रे-जर्रे से
मुलाकात पूरी हो जाएगी
तो फिर घर लौट चलेंगे।
-आस्था गंगवार ©
Wooow Astha👌🤘😘
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Thank you sanjays
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Bhut Sundar
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Sukriya
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बहुत खूबसुरत !
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धन्यवाद आपका
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Nice one.
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Thank you
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बहुत खूब।एक चींटी वाली रचना भी बहुत अच्छी थी।कई बार चींटी को कागज से पत्ते से हमने भी पानी से खूब निकाला है।क्यों की छोटी सी ही सही वो आकार में जीवन तो उसमें भी है।
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धन्यवाद पर वो रचना हटा दी मैंने ब्लॉग से
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क्यों वो भी काफी अच्छी थी ।
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क्या बात है आस्था जी बहुत खूब
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bahut hi khubsurat
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Day by day your writings become more beautiful… have a bright future your words are full of fellings ..
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Thank you so much…. For such a great complement 😃
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