ओ मेरे मनमोहना
तुम बिन जाऊँ कहाँ
रास न आये कोई बगिया
न ही भायें प्यारी सखियां
जमुना से है हाल भये
बरसों बीते दरस किये
आ जाओ श्याम रास रचैया
पार लगाओ मन की नैया
तुम बिन कटे न मेरी रैना
आये न एक पल भी अब चैना
विरह की दूरी सही न जाये
अखियां भी कब तक नीर बहाये
प्रेम है तुमसे कितना कान्हा
कठिन है शब्दों से परिभाषित कर पाना
प्रीत में बरसों बरस मैं ऐसे जी लूंगी
तुम्हारी थी मैं सदा तुम्हारी ही रहूँगी।
-आस्था गंगवार ©
Wow. क्या खुब लिखा है। ईस रचना को तो सम्मान मीलना चाहीये। 👌👌👍📷📷📷
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका…. आपका कहना ही मेरे लिए सम्मान की बात है।
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👍👍💞
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बहुत ही सुन्दर वर्णन आस्था जी।
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धन्यवाद आपका 😊
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Wow beautifully penned
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Thank you very much
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Bahut sundar……
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धन्यवाद
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Beautiful
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Thank you
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खूब सुन्दर रचना
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धन्यवाद आपका
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अद्भुत…
वियोग और भक्ति रसमय कविता…
प्रभु वंदना…
सब कुछ सराहनीय
अंत में बस इतना ही कि
‘ कठिन है शब्दों से परिभाषित कर पाना’
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बहुत धन्यवाद आपका मेरी कविता के प्रति प्रेरणादायक प्रतिक्रिया के लिए
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