चारों तरफ दीवारे
जिनमें मैं कैद हूँ भी और नहीं भी
दिन निकलता है
दिन ढलता है
लम्हे बीतते है
चेहरों से पाला पङता है
मगर नजरें दीवारों से टकराती है
जब उदास होने लगती हूँ
तो ये दीवारें टिकने को सहारा देती है
जब दम घुटने लगता है
तो रोशनदान से आती रोशनी सुकून देती है
गुम होकर भी गुमशुम नहीं इस बंद शहर में
इन दीवारों में जिन्दगी है भी और नहीं भी।
-आस्था गंगवार ©
Sach kahaa yahi hai jindgi……
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
शुक्रिया
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
गुम होकर भी गुमशुम नहीं इस बंद शहर में
इन दीवारों में जिन्दगी है भी और नहीं भी।
Ati sundar 👏👏👏👏👏
पसंद करेंLiked by 2 लोग
धन्यवाद 😊
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Bhut gahrai m likha Hai
जब दम घुटने लगता है
तो रोशनदान से आती रोशनी सुकून देती है
गुम होकर भी गुमशुम नहीं इस बंद शहर में
इन दीवारों में जिन्दगी है भी और नहीं भी।
My fav line 👆
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
धन्यवाद 😊
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
बहुत ही अच्छा लिखा है चारों तरफ दीवारे ही तो हैं जिनमें कैद हैं।
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
धन्यवाद
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Loved it Astha! 💖
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Thank you
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Bahut khub
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
शुक्रिया
पसंद करेंपसंद करें
Very nice..
You are a great writer..
You define life so simply..
Have a great life ahead.
Keep writing..
Hattss off to you..
Try to make girls strong and happy enough to fight against evils..
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Thank you very much…. 😊
पसंद करेंपसंद करें