दो पल का गुस्सा
तेरे लिए बसी बेइंतहा
मोहब्बत के तले
दब जाता है।
करना भी चाहूँ
तेरे खिलाफ बेरूखी
सीने में धङकता तेरा दिल
इसकी इजाजत नहीं दे पाता है।
जाऊं भी तो किधर
तुझसे रूठकर के
तुझसे एक पल की दूरी में
कहीं भी सुकून नहीं आता है।
-आस्था गंगवार ©
Kya baat……anokha pyaar
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Good one!!
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Lovely poem
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Thank you
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