तू बन गया है रूह मेरी,
जिस्म की बात अब करूं कैसे।
कम पङ जाते हैं लब्ज मोहब्बत में तेरी,
तुझे बिन अल्फाज अब लिखूं कैसे।
तेरे आने से खिल गयी है बहारे,
बिन तेरे कटे पतझङ का जिक्र अब करूं कैसे।
उजाले हो गये रातों में भी संग तेरे,
ढलती शाम से अकेले अब मिलूं कैसे।
बस गया है नैनो में हर तरफ तू ही,
बेगाने आँसुओ से मुलाकात अब करूं कैसे।
मेरी ख्वाहिश तो बन गया है तू ही,
अब दिल में कोई और आरजू रखूं कैसे।
मेरा मुकम्मल ख्वाब मिल गया है मुझे,
बिन तेरे अब कोई तमन्ना करूं कैसे।
-आस्था गंगवार ©
Khoobsoorat
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Dhanyabad
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बहुत खूब
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धन्यवाद
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उत्तम
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धन्यवाद
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