तेरा दिल धङकता है, और मेरी साँस आती है
तुझे मैं याद करती हूँ, और गजल बन जाती है।
कदम जब बहकते है, और मंजिल दूर लगती है
तू साहिल बन जाता है, और मोहब्बत लहर बन जाती है।
देखे जब तू कातिल निगाहो से, दिल पर शमसीर चलती है
आती हूँ तेरे आगोश में, और सब इसरारें टूट जाती है।
गिरी जबसे चाहत के समुन्दर में, मेरी रूह गोते लगाती है
निकलकर आ नहीं सकती, तेरी रूह रूठ जाती है।
ताउम्र साथ देना है, निगाहे ख्वाब सजाती है
मुकम्मल हो जहाँ अपना, नूरानी आरजू हर रोज बढती जाती है।
तेरे लिए हर रोज दर पर, खुदा से इनायतें मांगती हूँ
कहते हैं सजदे में सिर झुकाने से, सब दुआयें कबूल हो जाती है।
-आस्था गंगवार ©
“गिरी जबसे चाहत के समुन्दर में, मेरी रूह गोते लगाती है
निकलकर आ नहीं सकती, तेरी रूह रूठ जाती है। ”
दिल और जज्बात के भावों का अच्छा मिश्रण है…
और अलंकार का भी बहुत अच्छा प्रयोग किया है…👌👌👌
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धन्यवाद आपका 😊
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bahut hi achha….
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Bhut dhanyabad apka
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Bahut aachi.
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Sukriya
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beautiful
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👌👌👌
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वाह वाह, शानदार रचना
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शुक्रिया 😊
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वाsssssह 👍
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धन्यवाद
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