गजल बन जाती है। 

तेरा दिल धङकता है, और मेरी साँस आती है 

तुझे मैं याद करती हूँ, और गजल बन जाती है। 


कदम जब बहकते है, और मंजिल दूर लगती है 

तू साहिल बन जाता है, और मोहब्बत लहर बन जाती है। 


देखे जब तू कातिल निगाहो से, दिल पर शमसीर चलती है 

आती हूँ तेरे आगोश में, और सब इसरारें टूट जाती है। 


गिरी जबसे चाहत के समुन्दर में, मेरी रूह गोते लगाती है 

निकलकर आ नहीं सकती, तेरी रूह रूठ जाती है। 


ताउम्र साथ देना है, निगाहे ख्वाब सजाती है 

मुकम्मल हो जहाँ अपना, नूरानी आरजू हर रोज बढती जाती है। 


तेरे लिए हर रोज दर पर, खुदा से इनायतें मांगती हूँ 

कहते हैं सजदे में सिर झुकाने से, सब दुआयें कबूल हो जाती है। 

      -आस्था गंगवार © 

Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

its me astha gangwar . I m founder of this blog. I love to write poems... I m a student of msc to chemical science.... read my poems on facebook - https://www.facebook.com/asthagangwarpoetries/ follow me on - I'm on Instagram as @aastha_gangwar_writing_soul

12 विचार “गजल बन जाती है। &rdquo पर;

  1. “गिरी जबसे चाहत के समुन्दर में, मेरी रूह गोते लगाती है 
    निकलकर आ नहीं सकती, तेरी रूह रूठ जाती है। ”
    दिल और जज्बात के भावों का अच्छा मिश्रण है…
    और अलंकार का भी बहुत अच्छा प्रयोग किया है…👌👌👌

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