हवा मैं भीनी खुश्बू
चटखती कलियाँ खिलते फूल
झरता पतझड़ और सूखे पत्ते
शान्त मन को विचलित करते हैं
सैकड़ों प्रश्न होते हैं जेहन में
कलियों के यौवन पर नजर पङे
फूल सुन्दरता से अपनी ओर खीचें
इससे मन की उथल-पुथल न गयी
और मैं नीरस सी रह गयी
मुझे खींचा तो उस पतझङ ने
जहाँ पर्ण-विहीन शाखाएँ थी
सूखे पत्ते चारो ओर बिखरे थे
कोई शोर नहीं बहारे खामोश थी
और मेरी उथल-पुथल, नीरसता भी।
-आस्था गंगवार ©
उत्तम
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धन्यवाद
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प्राकृतिक जीवन से ओतप्रोत है आपकी लेखनी
अद्वितीय
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धन्यवाद
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Nice
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