मैं हूँ कोरा कागज
आप हैं मेरे अल्फाज
जब भी लिखती हूँ जज्बात
हो जाता है एक नयी कविता का आगाज।
मैं हूँ गहरी नींद
आप हैं मेरा ख्वाब
जब भी जगती हूँ आधी रात
हो जाता है एक नयी कविता का आगाज।
मैं हूँ बहती नदी
आप है मेरा समुन्दर गहरा
जब भी गिरती बनके जल-प्रपात
हो जाता है एक नयी कविता का आगाज।
मैं हूँ खिलती कली
आप है मेरा भ्रमर
जब भी आता स्पर्श का आत्मिक स्वाद
हो जाता है एक नयी कविता का आगाज।
मैं हूँ ढलती शाम
आप हैं मेरा जगता सवेरा
जब भी होता है ह्दय में प्रेम प्रकाश
हो जाता है एक नयी कविता का आगाज।
-आस्था गंगवार ©
Bahut hi khoobsoorat Rachna!!!
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Sukriya
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You are always welcome 💝
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Kya baat hai. Simply Superb.
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Sukriya
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Superb 👌👌
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Thank you
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Welcome 🙏🙏🙏
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खूबसूरत अंदाज़ में आगाज़
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बहुत शुक्रिया…. 😊
आपकी रचनायें भी मुझे बहुत प्रभावित करती है।
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
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