लिखने बैठूं कभी कभी,
लगता सब कुछ लिख डाला।
अभी मिला है जीवन रस,
संग प्रेम प्याला पी डाला।
नहीं है भाये कृत्रिम रंग,
जा तितली से सौदा कर डाला।
बीच भँवर जब फस गयी नैया,
समुन्दर से हाथ मिला डाला।
जो फैलाये अँधेरा सघन,
मोम सा पिघलाकर जला डाला।
आता नहीं सुर, ताल, संगीत,
सब अपनी धुन में गा डाला।
जंजीरो में जकङी मानसिकता,
रीत रिवाजो का बंधन मिटा डाला।
बेपरवाह जमाने से हो,
जीने का अंदाज बदल डाला।
-आस्था गंगवार ©
ब्यूटीफुल आस्था जी
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धन्यवाद आपका
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Bahut sundar…
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धन्यवाद
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ati sundar
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Bhut dhanyabad
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Bahut ache
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Sukriya
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🙏
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Nyc
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