जमाना कह रहा। 

जमाना कह रहा 

उसे ही क्यो महसूस करती जाती है 

जज्बात को अल्फाजो से क्यो पिरोती जाती है 

उसमें खोकर आँखें क्यो खाली कर जाती है 

उसे ही अब क्यों लिखती जाती है। 


जमाना कह रहा 

अपने पिया की यादो में इतना क्यों खोती जाती है 

सुबह को शाम और शाम को सुबह बताती है 

प्रेम की किताब ही क्यों पढती जाती है 

उसे ही अब क्यों लिखती जाती है। 


जमाना कह रहा 

लहर बन साहिलो से क्यो बार बार टकराती है 

सरिता बन क्यों समुन्दर से मिलने आती है 

ख्यालो के भँवर में क्यों फसती जाती है 

उसे ही अब क्यों लिखती जाती है। 


जमाना कह रहा 

तितली सा अस्तित्व तेरा क्यों इतना इतराती है 

छूते ही बिखर जायेगी क्यों खौफ नहीं खाती है 

उसकी ही खुश्बू से अब क्यों महकती जाती है 

उसे ही अब क्यों लिखती जाती है। 


जमाना कह रहा 

चांदनी रातो में क्यों रोज बैठने आती है 

बेबजह क्यों आसमां को निहारती जाती है 

आँसुओ से क्यो उसकी तस्वीर बनाती है 

उसे ही अब क्यों लिखती जाती है। 

            -आस्था गंगवार 




Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

its me astha gangwar . I m founder of this blog. I love to write poems... I m a student of msc to chemical science.... read my poems on facebook - https://www.facebook.com/asthagangwarpoetries/ follow me on - I'm on Instagram as @aastha_gangwar_writing_soul

15 विचार “जमाना कह रहा। &rdquo पर;

  1. Nice very nice

    On Jan 4, 2017 7:37 PM, “KUCH RANG ZINDAGI KE With astha gangwar” wrote:

    > Astha gangwar posted: ” जमाना कह रहा उसे ही क्यो महसूस करती जाती है
    > जज्बात को अल्फाजो से क्यो पिरोती जाती है उसमें खोकर आँखें क्यो खाली कर
    > जाती है उसे ही अब क्यों लिखती जाती है। जमाना कह रहा अपने पिया की यादो
    > में इतना क्यों खोती जात”
    >

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