खिङकी, मैं और मेरा नजरिया। 

रोशनी आती तो है खिङकी पर, 

अब उसमें वो बात नजर नहीं अाती। 

वो नहीं बदली बादलो के ढकने पर, 

बस धुंधली पङ गयी। 

चमक वही रंग वही, 

और किरणे भी वही, 

फिर क्या बदला वक्त के साथ 

मैं, मेरा नजरिया………। 

उसको अँधेरे ने आ घेरा, 

पर कमजोर नहीं पङी।

थकी नहीं, 

धैर्य नहीं खोया, 

खुद को तपाया। 

दिया रोशन हुआ आखिर, 

मिल गया उसको उसका मुकाम। 

पा लिया अपने बजूद को फिर से, 

और फिर से रोशनी आ गयी खिङकी पर।

इस बार फिर से मैं बदली,

और मैंने भी पा लिया अपने बजूद को, 

एक नये नजरिये के साथ…………………  ।  

       -आस्था गंगवार 

Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

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