लाचारी, गरीबी की मार से
मेरा नन्हा कोमल बचपन कहीं खो गया।
है नहीं रहने को ठिकाना
फुटपाथ ही अब मेरा घर हो गया।
चाहिए था होना कन्धो पर किताबो का झोला
दो वक्त की रोटी का जुगाङ ही तकदीर बन गया।
मुझे भी चाहिए थी कलम औरो की तरह
ये सपना तो बस एक सपना बनके रह गया।
क्या जमाने की मतलबी निगाहे नहीं पङती मुझ पर
या इंसान के अन्दर का जमीर ही मर गया।
मुझे भी चाहिए है ममता की घनी छांव
ईश्वर तो मुझे मेरा हक देना ही भूल गया।
मेरी आँखों में भी पलते है मासूम सपने
पेट की भूख तले सपनो का गला दब गया।
मुझे भी खेलना है खिलौनो के संग
किस्मत की लकीरे कुछ ऐसी गढी खुद एक खिलौना बन गया।
तरस खाते है लोग मेरी बेबसी पर
लेकिन स्वार्थ, मेरे लिए उनके हाथ बाँध गया।
कूङे के ढेरो में पलता है मेरा बचपन
मतलब परस्त जमाना मुझ पर हंसकर चैन से सो गया।
मेरे नन्हे हाथ लोगों की चाकरी कर रहे
मुकद्दर के अागे मेरी उम्मीदो पर भी अँधेरा घिर गया।
कहते हैं बच्चे भविष्य है इस देश का…..
और एक भ्रष्टाचारी मेरे भविष्य से ही राजनीति कर गया।
-आस्था गंगवार
First of all … I’m thankful to you
For having wOrds on these part of our life.. really words with feeling
..now we can only do something for these children, this poverty
Looking forward to have such more People
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धन्यवाद मैं आशा करती हूँ आपको पसन्द आयी होगी बस मैंने कोशिश की एक बाल मजदूर के दर्द को शब्दो में पिरोने की…
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Beauty
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आपने अत्यन्त गहनता से बाल मजदूरी को रेखांकित किया है ! 👍
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धन्यवाद
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उत्तम वर्णित
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बहुत धन्यवाद आपका
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एक कटु सत्य, सुन्दर आंकलन
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धन्यवाद
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Nice
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Thank u
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दिल की गहराई से लिखी गयी रचना बहुत मर्म स्पर्शी है आस्था जी,
बहुत खूब!
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका 😊
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Shukriya Asthaji.
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बहुत अच्छा लगा…
We the youth has to frame a better society
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Sukriya
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aapne apni ye kavita bachhon ke character me rahkar mahsoos krke likhi hai….mujhe lagta h apne 99% mahsoos kiya h….nice poem kavitri priye astha gangwar ji
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Un bachho ki stithiti ko…
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Sad truth of society but none can help. Huge population and poverty and it will rise.
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