हर डगर जगमगा गयी। 

तेरे मिलने से मुझमे नजाकत आ गयी 

बिन वजह मुस्कुराने की आदत आ गयी 

बिन तेरे था अँधेरा राहो में मेरी 

तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी। 


न थी कोई ख्वाहिश न दिल था आशिकाना 

थी भटकी हुई मुसाफिर पता न था है कहाँ मुझे जाना 

तेरे करीब आयी तो मंजिल करीब आ गयी 

तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी। 


दिल था गमगीन होंठो पर थी खामोशी खङी 

बेगानी आँखों से बहती थी हर पल आँसुओ की झङी 

तू आया तो खुद को संभालने की कला आ गयी 

तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी। 


बहकते थे कदम खंडहरो की तरफ 

भागता था मन उदासी की तरफ 

तुझ संग चलने से पतझङ में भी बहार छा गयी 

तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी। 


बीते कल की यादो का टूटा गुलदस्ता था मेरे पास 

नहीं थी अहमियत उसकी फिर भी था वो खास 

तुझ जैसा गुलिस्तां मिला तो जीने की वजह पा गयी 

तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी। 

          -आस्था गंगवार 


Astha gangwar द्वारा प्रकाशित

its me astha gangwar . I m founder of this blog. I love to write poems... I m a student of msc to chemical science.... read my poems on facebook - https://www.facebook.com/asthagangwarpoetries/ follow me on - I'm on Instagram as @aastha_gangwar_writing_soul

20 विचार “हर डगर जगमगा गयी। &rdquo पर;

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