तेरे मिलने से मुझमे नजाकत आ गयी
बिन वजह मुस्कुराने की आदत आ गयी
बिन तेरे था अँधेरा राहो में मेरी
तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी।
न थी कोई ख्वाहिश न दिल था आशिकाना
थी भटकी हुई मुसाफिर पता न था है कहाँ मुझे जाना
तेरे करीब आयी तो मंजिल करीब आ गयी
तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी।
दिल था गमगीन होंठो पर थी खामोशी खङी
बेगानी आँखों से बहती थी हर पल आँसुओ की झङी
तू आया तो खुद को संभालने की कला आ गयी
तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी।
बहकते थे कदम खंडहरो की तरफ
भागता था मन उदासी की तरफ
तुझ संग चलने से पतझङ में भी बहार छा गयी
तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी।
बीते कल की यादो का टूटा गुलदस्ता था मेरे पास
नहीं थी अहमियत उसकी फिर भी था वो खास
तुझ जैसा गुलिस्तां मिला तो जीने की वजह पा गयी
तेरी चाहत से अब हर डगर जगमगा गयी।
-आस्था गंगवार
Bahut bahut bahut hi sundar
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धन्यवाद 😊
आपकी रचनायें भी अद्भुत है।
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धन्यवाद आस्था जी
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Hmm.,…love weaves magic all around isn’t it. So well written. Looks like love is in the air 💛😍
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Thanks for reading and complement… 🙂
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Welcome dear!
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Your poetry always wows me.Heartfelt Congratulations.
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Thank u so much
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वाह सुन्दर अभिव्यक्ति
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बहुत धन्यवाद आपका 😊
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Bahut khoob
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Sukriya
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इस कविता को पढ़ के दिल में मुस्कान आ गयी….
😄😄😄
Beautiful…
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बहुत शुक्रिया आपका
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हमेशां की माफिक दिल को छूने वाली रचना बहुत खूब आस्था जी
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बहुत धन्यवाद आपका
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आपका दिल से स्वागत है आस्था जी
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waooo you have jumbled it down so beautifully ❤️
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Thank u
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Kya baat h kavitri priye astha gangwar ji…Adhbhut lekhan hai apka
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