अगर तू सागर होता तो मैं नदी होती
पत्थरो से टकराती पहाङो से गिरती
सतत् निर्मल प्रवाह के साथ
तुझसे मिलने को अनन्त तक बह लेती
जग में भी हमारे मिलन की कहानी सदियो तलक रहती
अगर तू शरद का चाँद होता तो मैं चांदनी होती
अपने अलौकिक प्रेम की किरणे
धरती पर बिखेरती
दो प्रेमी देखते और खुश होते
मेरी रोशनी में अपने प्रेम का सौन्दर्य बढाते
हमारे प्रेम की गाथा भी गाते
अगर तू दिया होता तो मैं बाती होती
तेरी तपिश में खुद को जला लेती
अपनी पूरी सामर्थ से जलकर
गहन अंधकार को चीरती जग को रोशन करती
अपने प्रेम के लिए अपना अस्तित्व मिटा देती
अगर तू गगन होता तो मैं धरा होती
जब तू बरखा बन अपना प्रेम बरसाता
मैं हरियाली का श्रंगार करती
तेरे प्रेम में इतनी बाँबरी हो जाती
सूर्य की तपन और चन्द्र की शीत बयार भी सह लेती
अगर तू भ्रमर होता तो मैं कली होती
तू मुझको स्पर्श करता मैं हौले से शरमाती
मन्द मन्द मुस्कुराती पुष्प बन खिल जाती
तेरे संगीत की मधुर धुन पर
हवाओ के झोंको संग धीरे धीरे इठलाती
तेरे संग नयी नयी सुबह जीने को
ढलती शाम साथ खुद को खो देती।
-आस्था गंगवार
beautiful poem
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हमेशा की तरह अद्भुत
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Sukriya
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good 1… 🙂
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Thank you
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ati sundar kavita
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Reblogged this on poem by heart.
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बहुत सुंदर सृजन आस्था जी
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धन्यवाद 😊
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nice lines
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