सागर से गहरा प्रेम हमारा
शरद की चांदनी सा शीतल है
हम दो फूल बन महकते है
प्यार के इस सुन्दर उपवन में
जन्मो जन्मो के साथी है
साथ जिये है साथ मरे है
हर जन्म में हम मिलते है
एक नयी कहानी के अवतार में
साथ प्रिये का एेसा है
कि मन को भाता जाता है
अनुभव ऐसे दे जाता है
जैसे ठण्डक सुबह की हवा के झोंके में
जीवन लीला चलती जाती है
साथ बिताने के पल ढलते जाते है
अपने प्रिये की बगिया में ऐसे खो जाती हूँ
जैसे मोरनी बारिश की बूंदो में
प्रिये के नैनो के दर्पण में
रंग रूप संवारा करती हूँ
ढेरो सपने बुन जाती हूँ जीवन साथ बिताने को
मेरे दिन ढल जाते है इसी उधेङबुन में
मैं प्रेम में पङी बाँबरी हूँ
धूलि धुसरित यादो में खोयी रहती हूँ
प्रिये संग काटे पलो को ऐसे खोजती हूँ
जैसे चंचल मृग कस्तूरी को जंगल में।
-आस्था गंगवार
अविश्वसनीय!! अद्भुत्
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धन्यवाद 😊
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बहुत खुबसुरत कविता……
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शुक्रिया 😊😊
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स्वागत हैं आपका.
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Wow, अप्रतीम 💞💞
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बहुत उम्दा और बेहतरीन शब्दो का चुनाव।
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beautiful poem
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nice story…… 👍👍👍👍👍👍👍👍
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Waah bas aur kya kahen
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Sukriya
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क्या बात है बहुत उम्दा आस्था जी
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Sukriya
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Adbhut rachna
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बहुत धन्यवाद 😊
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Bhut khubsurat 🙂
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Sukriya 😊
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