तू मुझे कभी कभी नहीं समझता
और मैं तुझे समझा नहीं पाती
क्या महसूस करती हूँ अकेले बैठे
कभी कभी तुझे बता नहीं पाती
तुझसे जाने का कहकर
खुद से ही रूठ के बैठ जाती
रोना चाहती हूँ जी भरके
वादे से बंधी हूँ रो भी नहीं पाती।
-आस्था गंगवार
KUCH RANG ZINDAGI KE With astha gangwar
भावनाओ और अनुभवो की माला को शब्दो के मोती से पिरोती हूँ, जिन्दगी के कुछ पन्नो को कागज पर उकेर देती हूँ।कुछ बातें जिन्हें कह नहीं सकती उन्हें एक नया रूप देती हूँ, ऐसी ही किसी गहरी सोच के साथ एक नयी कविता लिख देती हूँ।
काश वो बिना कहे सब समझ जाये
तो कभी दर्द का सैलाब न आये
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काश वो मेरे ओंठो की मुस्कुराहट बन जाये
फिर दर्द भी मुझे रूला न पाये
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काश वो आपके होंठों की मुस्कुराहट बन जाये,
तुम तक आने वाला हर दर्द मुस्कराहट के साथ ही आये
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😃😃
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आप खामोश क्यों हो गई ?
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खामोशी भी बोलती है बस कोई उसको सुन सके।
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आपकी ख़ामोशी यही बयान कर रही है,
बस धड़कन आपकी है लेकिन साँसों पे हक किसी और का है
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कौन हूं में क्या है वजूद मेरा,
आखिर एक ख़ामोशी सी हूँ मैं
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खामोशी को पढने का हुनर सीखना हो,
तो बेजुबांन आँखों को पढना।
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बस यही तो हम कर न पाए ज़िंदगी में,
न उसकी आँखों को पढ़ पाये और ना ही दिल को समज पाये
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आप खामोश क्यों हो गई ???
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बहोत खूब
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Sukriya
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Welcome
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बङी खूबसुरत कविता।
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धन्यवाद
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Keep Smiling…
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😃😃
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Very nice poetry, I liked it a lot 😊👍🏼👌🏼
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Thank you so much dear
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Great job…don’t have words…superb..
Write on!! 🙂
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Thank you 😃
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वाह खूब आस्था जी
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Thank you
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Again Welcome.
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too good
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