बैठी थी मैं उस किनारे रात का था साया
आज चांद को देखा तो फिर से तू याद आया
तेरा ऐहसास मेरे जज्बात दिल में है सब छुपाया
सितारो की महफिल में तलाशा तुझको फिर भी तू न मिल पाया
कह के तो जाता जान ए बफा तू ही था मेरा हमसाया
तेरे न होने का एहसास अक्सर आँखों में अश्क ले अाया
तू गुम हुआ मै गुमसुम हुई कैसा कहर ये ढाया
बैठी थी मैं उस किनारे रात का था साया
आज बारिश को देखा तो बीता कल याद आया
पानी की हर बूंद में तेरा ही चेहरा नजर आया
बारिश होती रही और मैं भीगती रही
तुझे याद करती रही और रोती रही
मेरी आँखों से आंसू छलके तो वो फलक भी रो आया
बैठी थी मैं उस किनारे रात का था साया।
-आस्था गंगवार
Nice.बहुत अच्छा लिखा है।
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Thank you so much
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सुंदर बहुत सुन्दर , I love rains cuz I wanna cry .. 🙂 beautiful it is ..
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