किसी से प्यार बेइंतहा बेेशुमार किया था
उस शख्स पर अपनी जान को निसार किया था
वो एहसास जो उसके साथ होने पर था
उस पर तहे दिल से ऐतबार किया था
उन दिनो जिन्दगी के हर एक पल में
उसको अपनी धङकनो में शामिल किया था
किसी से प्यार बेइंतहा बेेशुमार किया था
मैंने उसे अपनी कीमती दुआ का नाम दिया था
यकीनन मुझे कुछ कहना था उससे
कि मैंने तुझसे बेपनाह इश्क किया था
उसको रोकने को रब का वास्ता भी दिया था
इश्क के बदले उसने बेबफाई का गम दिया था
किसी से प्यार बेइंतहा बेेशुमार किया था
उसके सजदे सिर झुकाने का वचन लिया था
क्योंकि मैंने उसको खुदा का औहदा दिया था
निभा न सका वो रिश्ता और तोङ लिया था
किसी और के वास्ते उसने मुझे छोङ दिया था
किसी से प्यार बेइंतहा बेेशुमार किया था।
-आस्था गंगवार
agar ye bas ek kavita hai toh parhkar bohot accha laga – kafi khoobsurti se likha gya hai. lekin ye agar aapke wastawik jiwan ki baat hai toh yhi kahunga ki kuch log hume milte hi isliye hai taki wo hume unke bina rehna sikha paye.
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
It is just a poem
I m a writer aur mai jo b likhu ye zaroori ni wo meri life se related ho
Mai dusro ki feelings ko b poetries me likhti hu…..
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति